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रूप गह़लक सपनवाँ / अरुण हरलीवाल

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सोना-सन गोहुम के बाल, हो!
रूप गहलक सपनवाँ।

धोती-पगड़ी, पायल-कँगना...
खेत-बगइचा, दूरा-अँगना...
रंगीन भेलइ चौपाल, हो!
फगुआएल पवनवाँ।

रँग पहचान रहल हे अन्हरो;
गोंगो गावे, नाचे लँगड़ो...
लूल्हो बजावे करताल, हो!
गूँजऽ हइ गगनवाँ।