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रूबरू दोस्त सारे हुए कम से कम / रंजना वर्मा

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रूबरू दोस्त सारे हुए कम से कम ।
भूल जायेंगे शिकवे गिले कम से कम।।

आँधियाँ उठ रहीं जंगलों में चलो
थे जो बिछड़े वे पत्ते मिले कम से कम।।

है लहर पर लहर आज उठने लगी
यूँ किनारों की जानिब बढे कम से कम।।

थी जरूरी बहुत तेल की धार भी
अब जलेंगे ये सारे दिए कम से कम।।

साथ पाया हवा का तो उड़ कर चली
धूल पर्वत के सर पर चढ़े कम से कम।।

चूम भँवरा गया माफ कर दीजिए
फूल गुलशन में खिल तो गये कम से कम।।

कब्र पर फ़ातिहा के बहाने सही
इस तरह पास तो आ गये कम से कम।।