भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूमालों पर / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
हम रूमालों पर
कढ़े हैं
प्रीत के अक्षर
कब तहा कर
रख चलो
किस जेब में तुम
कौन
जाने ?