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रूसै छै जमाय / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
देखी भारत के हालत अखिया रोयी गेलै हो,
हम्में पैलों जे अजादी फेरू खोई गेलैं हो।
रूपा सेॅ पिल्हे कोला, विदेशी के भरलैं झोला
केतना चतुर विदेशी, तऽय रहलें भोला-भाला,
देखा-देखी सब गुड़-गोबर होय गेलै हो
हम्में पैलों जे अजादी फेरू खोई गलैं हो।
घरे-घर मेॅ बहलाय फुसलाय विदेशी समाय हो,
विदेशीये समानऽ लेली रूसैं छै जमाय हो
सहोदर भाईय ऽ दुश्मन होये गेलै हो
हम्में पैलों जे आजादी फेरू खोई गलैं हो।