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रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया / राम रियाज़

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रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया
हम ने इंसान में इंसान को मरने न दिया

तेरे बाद ऐसी भी तन्हाई की मंज़िल आई
कि मिरा साथ किसी राहगुज़र ने न दिया

कौन था किस ने यहाँ धूप के बादल बरसाए
और तिरे हुस्न की चाँदी को निखरने न दिया

प्यास की आग लगी भूख की आँधी उट्ठी
हम ने फिर जिस्म का शीराज़ा बिखरने न दिया

ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनी
दिन ने जीने न दिया रात ने मरने न दिया

अश्क़ बरसाए कभी ख़ून बहाया हम ने
ग़म का दरिया किसी मौसम में उतरने न दिया