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रेंगना सुहावत हे / नारायणलाल परमार
Kavita Kosh से
नदिया के कुधरी साहींन काबर बइठ जान
पानी कस लहर लहर रेंगना सुहावत है।
हिम्मत राखेन, मानेन
आत्मा के कहना ला।
पहिरेन हम सबर दिन
आगी के गहना ला।
सूरज, बिंदिया बन चमकय हार माथ मां,
करके अब करिया मुंह, अंधियारी जावत हे।
मितानी चालत हावय
हाथ अउ पांवव के।
हम दुकान नइ खोलेन
घाम अउ छांव के।
छोटे अउ बड़े फल, हमार बर बरोबर हे,
उहिच पाय के जिनगी, गज़ब महमहावत हे।
चीखे हन, हम सवाद,
नवा-नवा ‘डहर के
देखे हन नौटं की
अमृत अउ जहर के
पी डारेन जहर ला, संगी। हम नीलकंठ,
हमर पछीना अमृत सहीं चुहचुहात हे।
तराजू मां नई तौलेन
हमन अपन सांस ला।
हांसत-हांसत हेरेन
पीरा के फांस ला।
अडचन ला मानेन हम निच्चट चंदन चोवा,
धरती महतारी के भाग मुचमुचावत हे।