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रेखांकन / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
पहले जब पढ़ा था
तुम्हें मैंने
अनेक
शब्द, वाक्य, पैरेग्राफ
रेखांकित कर डाले थे,
माला के मनकों-सा
उन्हें खूब
फेरा भी!
किन्तु, आज
जब से तुम्हें
दुहराकर उठा हूँ मैं-
खोज रहा हूँ
रबर का कोई टुकड़ा
रेखाएँ
गलत
खींच डाली थीं!