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रेज़गारों की अदावत से बचा ले मुझको / ज्ञान प्रकाश विवेक
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रेज़गारों की अदावत से बचा ले मुझको
जल की इक बूँद हूँ आँखों में बसा ले मुझको
एक आवाज़ हूँ दूँगा तुझे शब्दों के गुलाब
अपने सन्नाटे के गमले में लगा ले मुझको
मैं तो सोये हुए बालक की हँसी हूँ ऐ दोस्त
तेरा जी चाहे तो चुपचाप चुरा ले मुझको
क्या पता धूप के पानी में बदल जाऊँ मैं
अपने अहसास की किरणों में मिला ले मुझको
पेड़ की शाख़ ने मुस्का के कहा बालक से
तूने खाने हैं अगर फल तो झुका ले मुझको.