रेत के नीचे बहती नदी / रूचि भल्ला
अनुप्रिया!
क्या तुम्हें कभी प्रेम हुआ है?
वह जो सपना को हुआ था वासु के साथ 
कमरे की दीवारों में वासु- वासु लिखती रही
और एक दिन वासु का हाथ थामे 
किसी इमारत से कूद गयी
प्रेम क्या जीवन के बाद मिलता है?
या जैसे अमृता इमरोज की पीठ पर 
साहिर का नाम लिखती है 
और रहती है साहिर से दूर
तो क्या प्रेम ख्यालों में साथ रहता है
या प्रेम वह है जो सोहनी को 
महिवाल के साथ नदी में डूब कर मिलता है?
कैसा दिखता है प्रेम?
जब वह आता है और तुम उसे देखती हो 
तो क्या वह आकर समा जाता है 
तुम्हारी दो आँखों में?
प्रेम दो आँखों में समा जाए 
क्या ऐसा होता है?
कहते हैं प्रेम
बजता रहता है शिव के डमरू में 
कृष्ण की बाँसुरी में 
प्रेम पाने की खातिर 
रोज जन्म लेता है सूरज और डूबता है नदी में
जबकि नदी को प्रेम में केवल सागर दिखता है 
नदी भागती रहती है सागर की ओर
सागर के गले में पड़ जाती है माला की तरह 
दोनों पाँवों से उचक कर चूम लेती है
सागर का अभिमानी माथा 
शायद प्रेम इसी को कहते हैं 
मैंने देखा है सखी!
साहिल की गीली रेत पर 
प्रेम लिख कर
किसी ने कहा था
जहाँ लिखा है मेरा नाम
वहाँ रोशनाई उलट गई
मैंने लिख कर देखा है 
उसका नाम 'प्रेम'
और देखा कि सागर की लहरें
भी नहीं मिटा सकीं उसका नाम
वे तो इसलिए आयीं
कि प्रेम में भर दें जीने का स्वाद
जो घुला रहे जीवन में नमक की तरह...
 
	
	

