भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत जाये / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
रेत जाये
दर्द की
यह प्यास
कैसी है
कि आँखें जोड़
सूरज से
पिये जाए
पानी की तरह
आवाजों को
फरवरी’ 77