रेत धीरे-धीरे गरम हो रही है
कूचियाँ धीरे-धीरे नरम हो रही है
तन चारों ओर से तप रहा है 
मन है कि बार बार तपती रेत में भुंज रहा है 
रेत व मन के बीच 
उम्मीद का तनाव है
बार-बार भूजे जाने के बावजूद 
मन भीतर रहने को बेताब है 
मन के भीतर आकृतियाँ उभर रही हैं 
सतह धीरे-धीरे हल्की हो रही है 
और अनंत प्रकार की आकृतियाँ उठती चली आ रही हैं 
यह रेत का रेत में विस्तार है 
नदी भाप बनकर उठ रही है 
औेर रेत को अनंत आकृतियों में छोप लेती हे 
यह दोपहर की रेत है 
जहां रेत अपनी पूरी मादकता के साथ
शिशिर से खेल रही है 
और जो पसीने की बंदें गिरती हैं रेत में 
ख़ुद ब ख़ुद एक आकृति उभर आती हैं 
यह कलाकार के पसीने की आकृतियाँ हैं 
जिसमें रेत ने अपने को खुला छोड़ रखा है 
लगभग निर्वस्त्र होने की हद तक 
यह रेत का आमंत्रण नहीं है 
यह कूचियों का खेलना है
और रेत है कि अपनी असीम आनंद के साथ लेटी है 
उत्साही कलाकारों की थाप तले !
दोपहर की चढ़ती धूप तले
जहाँ देह थोड़ी हाँफने लगी है
और नेह के नाते डगमगाने लगे हैं
ये कलाकार हैं जो पिता की भूमिका में 
नन्हें-नन्हें हाथों को 
थोड़ी-थेाड़ी काया दे रहे हैं 
और थेाड़ी-थोड़ी छाया भी ! 
रचनाकाल : 19.01.2008