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रेत सें निकली कहीं की यहू धारा मिलतै / अमरेन्द्र

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रेत सें निकली कहीं की यहू धारा मिलतै
लागै नै छै कि कहूँ हमरा सहारा मिलतै
तोहें दुसरा रोॅ रहोॅ हमरौ मतर देखी लेॅ
कम नै छै डूबतेॅ केॅ तिनको रोॅ सहारा मिलतै
लोग धारी में खड़ा छै लेलेॅ उम्मीदोॅ केॅ
केकरौ काँटोॅ तेॅ केकरौ फूलहजारा मिलतै
देखथैं देखथैं पथरैतै आँख देखी लियौ
टकटकी बान्है सें केकरौ की सितारा मिलतै
चूमै के बदला थुकी देलकै जे हथेली पर
कोन मुँहोॅ सें फनू जाय दोबारा मिलतै
बात कस्सोॅ कैन्हेनी लागेॅ मतर छै सच्चे
मिलतै फगदोलो फनू जेकरा कोभारा मिलतै
कैन्हें भटकै छी ई धूपोॅ में नढ़िया देह हम्में
की बियाबानोॅ में देखै लेॅ नजारा मिलतै

-19.7.91