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रेत है इज़हार के पानी के पार / रियाज़ लतीफ़
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रेत है इज़हार के पानी के पार
और वीरानी है वीरानी के पार
मौत की तश्कील से उभरा हुआ
कौन है मेरी फ़रावानी के पार
आ न पाई मुझ तलक ये काएनात
रह गई साँसों की तुग़्यानी के पार
फैल कर तुझ में न बस जाऊँ कहीं
रंग मुझ को रंग इम्कानी के पार
कौन फूटेगा अदम की कोख से
कौन ला-फ़ानी है ला-फ़ानी के पार
छोड़ अब मफ़्हूम की उजड़ी क़बा
कुछ नहीं मअ’नी की उर्यानी के पार