भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत (11) / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
सर-सर बहती रेत को
रोकने की कोशिश की है कभी
प्रयास भर करते ही
ऊंची उठने लगती है
और ढंक लेती है
जो भी रोकता है उसे
सर-सर बहती रेत
बहती है
सर्वभक्षी काल-सी।