भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत (13) / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहते हैं
यहीं कही
विलूप्त हुई सरस्वती
किंतु
नहीं हो पाई विलुप्त
बहती है सदा नीरा
आज भी
आदमी के मन में ।