भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत (3) / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
जेठ की घाम में
धू-धू करता है रेगिस्तान
सांय सांय करती है लू
भांय-भांय करता है सन्नाटा
फिर भी भेड़ का एक मेमना
बचा रहता है
भेड़ हो कर भी