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रेत / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
रेत पी जाता है नेत्रों से छलका दुख,
ऊपर से बेअसर
भीतर नम।
रेत-सी कहीं तुम भी तो नहीं?
छुपा लो!
अच्छा है छुपाना दुख।
पर नमी बरकरार रहे!
ताकि तेज आंधियाँ
उड़ा न लें जाये तुम्हें
या ढह न जाओ तुम
रेत के टिब्बे सी।