भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांस-सांस में
रच-पच बिगसै
रंग रेत रा

कांई है सारै
म्हारो जीणो-मरणो
रेत रै लारै

आ रेत रोसै
मा है मा, देखो लाड
आ रेत पोखै

हां, सोवै-जागै
ऐ दिन-रात म्हारा
रेत रै सागै