रेन बसेरा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
नाम रखा है रेन बसेरा,
दो मंज़िल का घर है मेरा।
नीचे धरती ऊपर छप्पर,
घर दिखता है कितना सुन्दर।
बैठक खाना रम्य मनोहर,
खिड़की पर परदों की झालर।
सोफा सेट गद्दियों वाला,
बिछी हुई सुन्दर मृग छाला।
कोने में सुन्दर गुलदस्ते,
दरवाजों पर परदे हँसते।
है घर में खुशियों का डेरा,
दो मंज़िल का घर है मेरा।
शयन कक्ष भी तीन बने हैं,
परदे बहुत महीन लगे हैं।
बड़े पलंगों पर गादी है,
चादर बिछी स्वस्छ सादी है।
शिवजी की होती हर-हर है,
यह दादी का पूजा घर है।
जहाँ रामजी लड्डू खाते,
कृष्ण कन्हैया धूम मचाते।
सबको सबसे प्रेम घनेरा,
दो मंज़िल का घर है मेरा।
इस कमरे में दादी दादा,
उच्च विचार काम सब सादा।
सभी दुआएँ लेने आते,
दादी दादा झड़ी लगाते॥
बच्चे धूम मचाते दिन भर,
भरा लबालब खुशियों से घर।
दादाजी के लगें ठहाके,
लोट पोट हैं हंसा-हंसा के।
कण-कण में आनंद बिखेरा,
दो मंज़िल का घर है मेरा।