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रेलगाड़ी में (3) / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
ठूँस-ठूँस कर
भर गई है सवारियाँ
पांव धरने को भी
नहीं बची जगह
साँस लेना भी
हो गया है मुश्किल यहाँ
धक्का-मुक्की
चिल्ल-पौं
इस जनरल कोच में
लखदाद उनको!
जो पूरी सीट को
खाट बनाकर
बड़े मजे से लेटे हैं।