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रेल चली, भई, रेल चली / कन्हैयालाल मत्त
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छुक-छुक-छुक-छुक रेल चली,
रेल चली, भई, रेल चली !
गार्ड बने हैं मिस्टर कल्लू,
इंजन-चालक मियाँ मिटल्लू ।
पहन लँगोट और घुटन्ने,
डिब्बे बने चार छुटकन्ने।
इक्का, ताँगा, रिक्शा, मोटर,
सबको करती फ़ेल चली !
रेल चली, भई, रेल चली !
सिगनल हुआ, बजी फिर सीटी,
गाड़ी चल दी बम्बई वी० टी०।
प्लेटफ़ार्म पर दौड़ लगाते,
लेट-लतीफ़ रहे भिन्नाते।
भीड़-भड़क्का, भागा-दौड़ी,
चें-चें, चिक-चिक झेल चली !
रेल चली, भई, रेल चली !
चुन्नू, मुन्नू, लीना,मीना,
बोले — ’आने लगा पसीना !’
तभीअचानक स्टेशन आया,
सबने भारी हर्ष मनाया।
हँसती-खिलती बाल-मण्डली,
खेल निराला खेल चली !
रेल चली, भई, रेल चली !