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रेल / लक्ष्मी खन्ना सुमन
Kavita Kosh से
छुक-छुक, छुक-छुक चलती रेल
बड़े मजे का है यह खेल
कूँ ऊँ-ऊँ ऊँ नहीं रुकूँगी
छोटे स्टेशन, मैं हूँ 'मेल'
टिकट कटाकर ही बैठो
नहीं पड़ेगा जाना जेल
दिल्ली से मुंबई तलक
करा रही हूँ सबका मेल
इंजन इसका है 'ईशान'
और 'माहिरा' इसकी 'टेल'
हटो-हटो सब पटरी से
ब्रेक हुई है इसकी फेल
अभी कहाँ स्टेशन आया
क्यों दरवाजा रहे हो ठेल
खड़-खड़ करते हैं पहिए
नहीं दिया क्या इनमे तेल
थकें न जब तक सब डिब्बे
नहीं रुकेगी तब तक रेल
'सुमन' रहो तुम लाइन में
नहीं करो यों धक्कम-पेल