रेशम का गाछिन में / हर्षनाथ पाण्डेय
भाषा का सेवक कहाये वोला लोगन जब
संयम ना बरती त्त बरती केे
सभ्यता आ संस्कृति विहिन भला लेख आ कविता का
ग्रन्थन का मंथक भी होखे त्त अधिका का
संघर्ष कइल जरूरी बा
संघर्ष विहिन साहित्य खाली खानापुरी बा
बाकिर शालिनता से भाई जी
आर्यन के खोदी मत मारग अवरोधी मत
सोधी मत कंचन के बार बार आगि में
एकलव्य अंगुठा के मोल का दिआई कबो केकरो सेे...
बाकिर ना गुरूभक्ति के साथे एकलव्ये जोडाई द्रुपद ना
कविता संस्कृति के सरिता ह
गीता का श्लोकन के पढे के अभ्यास करीं
साधीं मत जोधा के साहिल के मारे में
आईडियम्स के छेदीं मत
कविता आँखिन से पढल जाले
मुंहन के बदबु सुंघाईं मत साकी के
काव्यन प्रणेता के आंखिन में लोरन से भरि जाले
कविता का लेखन में लर जाले कालजयी चरनन में
देखल नां कबहूं जे सीपी आ सितुहा के
मुंगा आ मोती के मोल भला जानी ऊ
कृष्ण का भारत केे गीता महाभारत के
छेडीं मत स्वारथ में
सानी मत गंगा केे शहरन का नालिन में
फेंड लगाईं अब परयावरन बचाईं अब
'हरष' के निहोरा बा वीणा आ वाणी का पुत्रन से
पेवन मत साटीं अब रेशम का गाछिन में
पेवन मत साटीं अब रेशम का गाछिन में।