रेस्तराँ में लड़की / कुमार सुरेश
रेस्तराँ में एक शाम
हम थे और
कोने की सीटों पर जमे वे!
वही, खुशी से दमकते
लड़का और लड़की
लड़की कुछ ज्यादा मुखर
बातों से और आँखों से
जिनसे झर-झर बह रही थी
जीवन की अजस्र सरिता
जिसकी बाढ़ में
आसपास की टेबिलों पर बैठे लोग
डूब उतरा रहे थे
छोड़ कर उन्हें
जो खडे़ थे
समस्याओं की किसी ठोस जमीन पर
कहीं पढ़ी अंग्रेज़ी की कहावत जीवंत थी
‘फीमेल आफ अ स्पसीज इज़ मोर डेडली देन मेल’
वे घिरे थे स्पष्ट-गोचर आभामंडल में
जो शाश्वत लगता था
यह विश्वास करना कठिन कि
कभी यह जोड़ा
दूसरे जोड़ों की तरह
उदासीन बैठ पाएगा
किसी रेस्तराँ में
पूरी शाम वह लड़की
बिखराती रही सपने उस रेस्तराँ में
और दो-एक बादल तो हमने भी
हौले से सहेज लिए
ताकि सनद रहे और
वक़्त ज़रूरत काम आए।