भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रे, न कुछ हुआ तो क्या ? / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
रे, कुछ न हुआ, तो क्या ?
जग धोका, तो रो क्या ?
सब छाया से छाया,
नभ नीला दिखलाया,
तू घटा और बढ़ा
और गया और आया;
होता क्या, फिर हो क्या ?
रे, कुछ न हुआ तो क्या ?
चलता तू, थकता तू,
रुक-रुक फिर बकता तू,
कमज़ोरी दुनिया हो, तो
कह क्या सकता तू ?
जो धुला, उसे धो क्या ?
रे, कुछ न हुआ तो क्या ?