रे बदरा तो अइहँ तनी झुम के / संजीव कुमार 'मुकेश'
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
घुम-घुम मेघ लइहें
पटना-रंगुन से।
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
पर साल बाऊ के बड़गो हल आषा।
माय संग बैठ के देलूँ हल दिलाषा।
बसमतीया मोरी बुन चढ़इलूँ बतासा।
दू-चार दिन बरस के देखइलें अकाषा।
मंगरूआ के फीस माँग लइलूँ चुन-मुन से।
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
इनरदेव से कहिंहें जाके धरा के हालात।
बैठ के तो कर अइंहें थोड़ गलबात।
तोहरे पर जीव-जन्तु धरती के आस।
ठठा के बरस के बुझा दे पियास।
भर दिहें पइन-खत्ता-चुकदी चुन-चुन के.
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
मंझली के आगेल गौना के नेयार।
छोटकी बियाह जुकुर हो गेल तैयार।
ट्यूषन ले मँगरूआ के भेजलूँ बिहार।
सुद मांगे रोज आवे मानिक सोनार।
पीठ-पेट एक, सरके डोरी पतलून के.
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
कहीं तो धधा हें, कहीं चना-विदोर।
बरस के फुहार करदे मन के विभोर।
परसाल-तेरूस भी ढ़रकइलें लोर।
कुच-कुच अँन्हरिया करदे मन में इंजोर।
हरेरामा भी कइलूँ साथे मिल के टुन-टुन से।
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
हरियर होत खेत-खाड़ हरियर बघार।
मनमा में बहतई बसंती वयार।
धानी रंग से रंगतई गऊँआ जवार।
उनका ले झुमका करईबई तैयार।
अदरा की हथिया में बरसीहें सगुन से।
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...
अप्पन हई करनी, नञ् देवा के दोश।
पेड़ के कटावे में सब हे मदहोष।
बेटा या बेटी जनमें जब अंगना तऽ।
पाँच पेड़ लगा मन में रखीहा संतोश।
रोपऽ पेड़ आम-पीपर चाहे जैतुन के.
रे बदरा तों अइहँ तनी झुम के...