भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रे मन! ये दो दिन का मेला रहेगा / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे मन! ये दो दिन का मेला रहेगा।
कायम न जग का झमेला रहेगा॥
किस काम ऊँचा जो महल तू बनाएगा।
किस काम का लाखों जो तोड़ा कमाएगा॥
रथ-हाथियों का झुण्ड भी किस काम आएगा।
तू जैसा यहाँ आया था वैसा हीं जाएगा॥
तेरे हीं सफ़र में सवारी की खातिर।
कन्धों पै गठरी का मैला रहेगा॥