भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रे मन चेत अचेत सुरत ठहराई ले / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे मन चेत अचेत सुरत ठहराई ले।
छोड़ जगत को हेत नाम गुन गाई ले।
काया काचौ खेल भूल मत जाव रे।
विन सत लगैन वार धुंधवाय रे।
माता-पिता सुत बंध संग नहिं जात रे।
भज ले सीता राम बाद पछतात रे।
सब स्वारथ को खेल जगत को संग है।
अंतकाल कोउ नांह करत जम फंद है।
बेआगी की अगन जगत सब जरत है।
भजन बिना तन त्रास काल गति लहत है।
बहे खरेरी धार बहो बेकाम रे।
जूड़ीराम चित चेत भजो हर