Last modified on 14 अक्टूबर 2016, at 03:59

रे मुसाफिर जग जंजाल के बीच भटक रहा है / बिन्दु जी

रे मुसाफिर जग जंजाल के बीच भटक रहा है,
स्वांस रत्न भरके इस तन में तूने खजाना पटका है।
इस जंगल के बीच
काम क्रोध अज्ञान लोभ मद इन चारों का खटका है।
रे मुसाफिर
समझ रहा तू गुलशन जिसको यह माया का जाल है।
रे मुसाफिर
योग रोग हिंसक पशु फिरते काल बाघ का झटका है।
रे मुसाफिर
विषय ‘बिन्दु’ मत समझ सुधा तू घूँट हलाहल घटका है।
रे मुसाफिर