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रे सूरज तू चलते रहना / शशि पाधा

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रात अमा ने बाँधे घेरे
निशितारों ने डाले डेरे
उदयाचल के खोल झरोखे
सूरज तू तो जलते रहना
कलश ज्योत के भरते रहना

अम्बर की गलियों में कब से
राहू-केतु घूम रहे
अंधियारे की चादर ओढ़े
काले मेघा झूम रहे
किरणों की थामे कंदीलें
नभ गँगा में तरते रहना
ज्योतिर्मय तू चलते रहना

युगों- युगों के तापस तुम संग
ताप तपस्या मैं तप लूँगी
माघ-पोष की ठिठुरन बैरिन
आस तेरी में मैं सह लूँगी
जानूँ तुम फाल्गुन के आते
भेजोगे वासन्ती गहना
तू जाने, तुझसे क्या कहना

दूर क्षितिज पर रेखाओं ने
ओढ़ी है सतरंगी चूनर
उड़ी पतंगें मनुहारों की
शाख –शाख ने बाँधे झूमर
छू लेना पर्वत का मस्तक
धीर धरा का धरते रहना
रे सूरज तू चलते रहना!!!!!