रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे
सपने सुख कौतुक-देख्यो ।
लै कपि भालु अनेकन साथ मैं
तोरि गढ़ै चहुँ ओर परेख्यो ।
रावन मारि बुलावन मो कहँ
सानुज मैं अबहीं अवरेख्यो ।
सोक नसावत आवत आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।
रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे
सपने सुख कौतुक-देख्यो ।
लै कपि भालु अनेकन साथ मैं
तोरि गढ़ै चहुँ ओर परेख्यो ।
रावन मारि बुलावन मो कहँ
सानुज मैं अबहीं अवरेख्यो ।
सोक नसावत आवत आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।