रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै / लखमीचंद
रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।|(टेक)
भय भूल भ्रम ने त्याग, विषय वासना बैर की लाग।
अरै जा जाग जरा नाजोश जहर जड़ जबर जमाई सै यो जोबन जाल जंजीर का।
रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।|
लागी लगन ले लिया योग होकै लौलीन रहे जो लोग।
ऋषि कै रोग रहा ना रोष रमता राख रमाई सै यो रंग रचज्या रंगबीर का।
रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।
या दुनिया दुःख की दारण लगे देह धार धर्म ने हारण।
करतब कारण करनी ने कोस कुकरम कुबध कमाई सै गुनाह कुण कमशीर का।
रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।
मुक्ति मिलै मतिमंद मरले लखमीचंद सहम में फिरले।
अरै करले तजकै त्रिया दोष थोड़ी सी तपा तपाई सै फेर जप तप तकदीर का।
रै संता सील सबर संतोष श्रधा शर्म समाई सै, यो साधन संत शरीर का।