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रॉकलैण्ड डायरी–2 / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
कुछ बुद्धिमान
देशप्रेमी प्रवासी भारतीयों के
अथक उद्यम दूरदृष्टि करूणा और कानूनी सिद्धहस्तता
का
साकार रूप है
रॉकलैण्ड
वसन्त के इन आशंकाग्रस्त
छटपटाते दिनों में
हमारा अस्थाई मुकाम
अस्पताल फिर यह याद दिलाता है
कि भाषा कहां-कहां तक जाती है आदमी के भीतर
'कैंसर' एक डरावना शब्द है
'ठीक हो जाएगा' एक तसल्लीबख्श वाक्य
डॉक्टर कभी कसाई नजर आता है
कभी फरिश्ता और कभी विज्ञापन सिनेमा में टूथपेस्ट बेचने
वाला
दंदान साज
खुद की बदहाली
कभी रोमांचक लगती है कभी डरावनी
एक खटका गड़ता है कांख में कांटे की तरह
तुम एक बच्चे की तरह साथ में आये मित्र की बांह पकड़ना
चाहते हो