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रॉबिन अमीन / रविकान्त
Kavita Kosh से
चलो अच्छा हुआ
मेरा भाई भी सरकारी काम पर लग गया
लू-धूप में घूमता था
एक ही बात
डाक्टरों को बार-बार बताता था,
सपनों से भरी आँखों में लिए
शर्म और अपमान
दवाइयाँ बेचने के लिए
अपना मुँह लाल किए लेता था
अब कुछ करना नहीं
केवल वसूली करना है
न करने के पैसे लेना है
जिन्हें लोन वापस करने की तमीज नहीं
जो नहीं चुका सकते उधार
उन पर दबिश देना है
फटकार बताना है
उठाकर बंद कर देना है सीधे
और कुछ करना नहीं
रोज की रोज आमदनी है
सरकारी बूचड़खाने की पहली मशीन हो गया है
रॉबिन अमीर हो गया है