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रोअला-धोअला से रिसियो का मोक्ष कबो ना होला / सन्त कुमार वर्मा
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रोअला-धोअला से रिसियो का मोक्ष कबो ना होला।
स्वर्ग-द्वार कब बन्द भइल हऽ, देख विनोदी चोला।
एही से विवेकवाला जन हँसत-हँसावत र हके,
मस्ती के उपहार बिखेरेले भर-भर के झोला॥1॥
धरती पर बस तीन रतन बा-
अन्न, नीर आ मधुर वचन।
रत्न कहल पाषाण-खंड के-
इहे हवे अविवेक कथन॥2॥
अमवाँ के डलिया प चिड़िया चुरुंग बइठ-
दिन-रात करे गुलजार।
मोजरा के मधु बाकी कोइले नेवान करे-
इहे हवे जिनगी के सार॥3॥
धन के साथे अल्हड़ जवानी,
उल्लू भइल संघाती।
प्रभुता-मद से मातल मनुआँ
बन जइहें उत्पाती॥4॥