भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोकहिं जौं तो अमंगल होय / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
रोकहिं जौं तो अमंगल होय, औ प्रेम नसै जै कहैं पिय जाइए।
जौं कहैं जाहु न तौ प्रभुता, जौ कछु न तौ सनेह नसाइए।
जौं 'हरिचंद' कहै तुम्हरे बिन जीहै न, तौ यह क्यों पतिआईए।
तासौं पयान समै तुम्हरे, हम का कहैं आपै हमें समझाइए।