भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना / गिरिराज शरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
					
										
					
					
										
										
					
					
					रोकेंगे हादिसे मगर चलना न छोड़ना 
हाथों से तुम उम्मीद का रिश्ता न छोड़ना
झेली बहुत है अब के बरस जेठ की तपन 
बादल, किसी के खेत को प्यासा न छोड़ना
ले जाएगी उड़ा के हवा धुंध का पहाड़ 
शिकवे भी हों तो मिलना-मिलाना न छोड़ना
तुम फूल हो, सुगंध उड़ाते रहो यूँ ही 
औरों की तरह अपना  रवैया  न  छोड़ना
तुम ही नहीं हो, राह में कुछ दूसरे भी हैं  
आगे बढ़ो तो  दीप  जलाना  न  छोड़ना
 
	
	

