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रोके गिरना सरग टिटहरी / रामकिशोर दाहिया
Kavita Kosh से
रेतीले टीले पर
दुनिया
सहती दिन की
तेज दुपहरी
ऊपर पांँव
उठाकर सोती
रोके गिरना सरग टिटहरी.
कोटर से बाहर
आ चूजे
नभ को तौल
तलाशें पखने
नन्हीं चोंचों से
इक दूजे
कहते आपस
का दुख अपने
कस ली अपनी
कमर अभी से
लौटाने को याद सुनहरी.
संघर्षों में जुटी
हुई मांँ
चुग्गे गढ़कर
ले आ देती
गील गला
करने को भरती
मुंँह में
जलती धू-धू रेती
भूख आफतों से
जूझी तो
झांँके हड्डी देह इकहरी.
आहट से
संवेदित होकर
टिटिर टियूँ ने
आवाज लगाई
कोमल पंजों को
आ करके
नई सुरक्षा
कवच ओढ़ाई
अपने प्राण
बचा ले जाती
घेरे बाइस
लोग गिलहरी.
-रामकिशोर दाहिया