भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोक्या कंवळै धागै बाबा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
रोक्या कंवळै धागै बाबा
सुणो अठै सूं आगै बाबा
आ डाडी है कांटा आळी
कुण चालैला सागै बाबा
हवा देख बदळैला ऐ तो
म्हानै आज आ लागै बाबा
कीं चिलको सो दीस्यो एकर
घनख अंधारो आगै बाबा
ढाई आखरां रो धन जोड़
रात-रात ऐ जागै बाबा