रोगी के दर्शन / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
केकरै सर्दी, केकरौ खांसी
केकरहौं टी.बी. दामा
गोली टेबलेट खाय-खाय केॅ
होलोॅ जाय निकम्मा॥
जर्जर तन केॅ टुटलोॅ हड्डी
कामो सबके सभे फिसड्डी
छुट्टी होतै या कि मनौती
बोलै लागलै बम्मां॥
धरा लगाय केॅ करै अखाड़ा
दाव-पेचोॅ केॅ लागै बखेड़ा
उटका-पैची, उठा-पटक
कुकरोॅ सें लड़ै भिखमंगा॥
कोय गिरै छै कोइये पकड़ै
भेलै सगरो कजली
हाथ-गोड़ माथोॅ नीचै छै
भेले सगरो खुजली॥
गैलै उठी बवंडर बड़का
भड़केॅ लागलै खम्भा॥
हड्डी-पसली सभें बिखरलै
कोय छोटोॅ, कोय लम्बा॥
चुनै कोय मोती के दाना
भुखलोॅ कत्तेॅ रहतै नाना
अटका-मिसिया कुछु तेॅ मिलतै
भुखलोॅ पेटें जैतै दाना
ओछरै कोय, कोय डकरै छै
पकड़ै सबकेॅ जम्मा॥
हाकिम के इजलास खुलै छै
केकरो पोटा लोर चुवै छै
जिरह-बहस के गरमा-गरमी
कैन्हे फनु है रंग हुवै छै
रोग पकड़कै पीलिया-कैंसर
अगला तारीख जुम्मा॥
येकरा कहते के नै रोगी
कोय ढोंगी तेॅ कोइये भोगी
सबके मठ फहरावै झंडा
कोइये मुल्ला कोइये पंडा
‘रानीपुरी’ बनाबोॅ न तोहें
भाय तिजोरी लम्बा॥
केकरहो सर्दी केकरहो खासी