रोज़ इक ख़्वाब-ए-मुसलसल और मैं
रात भर यादों का जंगल और मैं
हाथ कोई भी सहारे को नहीं
पाँव के नीचे है दलदल और मैं
सोचता हूँ शब गुज़ारूँ अब कहाँ
घर का दरवाज़ा मुक़्फ़ल और मैं
हर कदम तारीकियाँ हैं हम-रिकाब
अब कोई जुगनू न मिश्अल और मैं
है हर इक पल ख़ौफ़ रक़्साँ मौत का
चार सू है शोर-ए-मक़्तल और मैं
शेर कहना अब ‘रईस’ आसाँ नहीं
सामने इक चेहरा मोहमल और मैं