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रोज़ पीता है उसे इतना नशा आता है / विनय कुमार
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रोज़ पीता है उसे इतना नशा आता है।
जितना शायर के ख्यालों में ख़ुदा आता है।
शेख़ किस शय के लिए बेच रहा है ख़ुद को
चीज़ वो क्या है जिसे रिंद लुटा आता है।
वक़्त माना है गिरां, रोशनी नहीं महंगी
चार आने में भी मिट्टी का दिया आता है।
यार जाता तो है आवाज़ उठाने के लिए
पर कभी तख़्त कभी ताज उठा आता है।
दिल शराफ़त के लिफ़ाफ़े में छटपटाता है
ग़म इनायत के लिफ़ाफ़े में छिपा आता है।
दुख है दरबान जहाँ, दुख की रसाई आसां
सुख जो आये तो कहे - कौन चला आता है।