रोज़ हम आह आह करते हैं
दम महब्बत का फिर भी भरते हैं
आप क्यों खून करते हैं दिलका
हम तो खुद दिल को खून करते हैं
शब गुज़रती है आहोज़ारी में
अश्क़बारी में दिन गुज़रते हैं
एक गुलरुख की आरज़ू में हम
अपने दामन में ख़ार भरते हैं।
रोज़ हम आह आह करते हैं
दम महब्बत का फिर भी भरते हैं
आप क्यों खून करते हैं दिलका
हम तो खुद दिल को खून करते हैं
शब गुज़रती है आहोज़ारी में
अश्क़बारी में दिन गुज़रते हैं
एक गुलरुख की आरज़ू में हम
अपने दामन में ख़ार भरते हैं।