रोटियाँ उनकी हत्या की गवाही दे रही थीं / कौशल किशोर
टीवी पर सरकार है
अपने-अपने घरों में हम-जैसे लोग हैं
सड़कों पर उन-जैसों की भीड़ है
पूरा देश लॉकडाउन में है
जिस रात 'नये महाभारत' की घोषणा हुई
टिड्डी दल जैसे टूट पड़ता है
वैसा ही दृश्य था
सड़क पर गाड़ियों का रेल-पेल
बाजार में भीड़-भगदड़
कोरोना से अधिक
किराना के खत्म हो जाने का खौफ था
अपने-अपने घर के किचेन को
भर देने की हड़बड़ी थी
वे लोग जिनके पास किचेन नहीं था
उनकी आंखों में सूनापन था
वे सर्वहारा थे
और अपनी औचक निगाहों से सब देख रहे थे
कुछ-कुछ समझ में आ रहा था
और बहुत कुछ ऐसा था
जो समझ से परे था
बरसों की मेहनत-मजदूरी के बाद भी
उनके पास न घर था, न दुआर
न बसेरा था, न डेरा
बस, किस्मत का फेरा
कि वे लौट रहे थे वापस
जैसे तुगलक का कोई अदृश्य फरमान हो
वे सब सड़क पर थे खाली डिब्बों की तरह ढनमनाते
उनके सिर पर गठरी थी
यही जिन्दगी भर की जमा पूंजी थी
गोद में भविष्य था
साथ भारत माता थी
आंखों में उनका देस था
वहीं उन्हें पहुँचना था
यह नये महाभारत की जंग थी
घरों से लड़ा जाना था
वही रण-क्षेत्र था, युद्ध-भूमि थी
सूरमा डटे थे, मर रहे थे, घायल हो रहे थे
फिर भी लड़े-भिड़े थे
वे लाखों में थे जिनके पास घर नहीं था
और था भी तो वह उनका देस था
जो बहुत पहले छूट गया था
वहीं वे पहुँचना चाहते थे
वहीं वे लौटना चाहते थे
इसीलिए वे सड़क पर थे
सड़क ही उनकी अन्तिम उम्मीद थी
उनका सड़क पर होना
इस युद्ध में पीठ दिखाना था
जो घरों में थे उनकी नजर में सब के सब भगोड़े थे
युद्ध के लिए सड़कों को खाली कराना जरूरी था
हुक्म जारी हुआ कि हर कीमत पर सड़क खाली हो
भगोड़े वहाँ से बेदखल कर दिये जायें
यह आपरेशन कोरोना का विस्तार था
इधर सिपाहियों के डण्डे थे
उधर उनकी पीठ थी
जहाँ वे दनादन छाप रहे थे अपने निशान
सड़क पर लोग भूख से बिलबिलाते रहे
बच्चे रोटी-रोटी मांगते रहे
वे प्यासे थे
और प्यास बुझाने के लिए
पानी की जगह उन्हें जहर मिला
कल तक वे बड़े काम के थे
अब बदबू फैलाने वाले कूड़ा-कचरा थे
वायरस की तरह संक्रामक थे
हुकुम तामील की गयी
वे मुर्गा बनाये गये
उनकी उठक-बैठक करायी गयी
जगह-जगह उन पर रसायन का छिड़काव हुआ
सिपाहियों ने बहादुरी प्रदर्शित करने में
कोई कोताही नहीं की
करने को सरकार उनके साथ बहुत कुछ कर सकती थी
वह फौज उतार सकती थी
पर गनीमत का दूसरा नाम लोकतंत्र है
यह 'जोर का झटका धीरे' से था
उनसे नहीं कहा गया कि वे अपना कागज दिखायें
गनीमत है कि बात उनके सड़क छोड़ने तक रही
आखिर मरता क्या न करता
सड़क छोड़ी तो रेल की पटरी पकड़ ली
वे गाँव पहुँचे या नही
उनमें कितने मरे बिलाए यह नहीं पता
बस इतना पता है कि वे इतना थके थे
कि रेल की पटरियों पर हीे ढेर हो गये
मतलब एक से बचे तो दूसरे ने मारा
उनके नाम पर वहाँ उनके शरीर के कटे हुए अंग बिखरे थे
और बिखरी थीं रोटियाँ जो उनकी हत्या की गवाही दे रही थीं।