यूँ तो रोटी किसी भी रूप में हो
सुन्दर लगती है
उसके पीछे की आग
चूल्हे की गन्ध और
बनाने वाले की छाप दिखाई नहीं देती
लेकिन होती हमेशा रोटी के साथ है
वह थाली में हो
हाथ में हो
मुँह में हो
या किसी बर्तन में हो तो
उसका दिखना उम्मीद की तरह चमक जाता है
लेकिन यह कितना दर्दनाक है कि
रोटी पटरी पर है और
उसे खाने वाले टुकड़ों में बिखर गए हैं
वे वही लोग हैं जो
उसी रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हुए
रोज जीते रहे, मरते रहे
अपने घर से हज़ारों मील दूर
लेकिन कभी पता नहीं चलने दिया
कि इस रोटी तक पहुँचना कितना मुश्किल है
आज जब वे नहीं हैं तब उनकी यातना सामने आई है
ये महज रोटी नहीं जिसकी तारीफ़ में कसीदे गढ़े जाएँ
ये इस बर्बर समय की ज़िन्दा गवाही है
जो बता रही है कि
वे कौन लोग थे जिन्हें इस हाल में पहुँचा दिया गया
वे भूखे थे या खा चुके थे ये कोई नहीं जानता
लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने रोटी
पटरी पर बिखरने के लिए तो बिल्कुल नहीं बनाई होगी
इस खाई-अघाई दुनिया के मुँह पर
ये सबसे बड़ा तमाचा है
लहू से सनी उनकी रोटियाँ दुनिया देख रही है ।
08 मई 2020