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रोटी के पैदा होते ही / केदारनाथ अग्रवाल

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रोटी के पैदा होते ही

बुझे नैन में

जुगनू चमके,

और थका दिल

फिर से हुलसा,

जी हाथों में आया,

और होंठ मुस्कराए,

घर मेरा

वीरान पड़ा--

आबाद हो गया ।