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रोटी / अनुलता राज नायर
Kavita Kosh से
भूख जगा देती है नींद से,
बेसुध कर देती है सपनों को
फिर
उनमें आग लगा कर
जलते ख़्वाबों पर
सेकती है रोटियाँ...
एक आधी रोटी का टुकड़ा
ढांक लेता है आकांक्षाओं और
उम्मीदों के बीज को,
सड़ा देता है उसे भीतर ही भीतर
अंकुरण के पहले ही....
भूखा नहीं देखता इन्द्रधनुषी सपने
भूखे को नहीं दिखती रोटी पर लगी नीली हरी फफूंद
उसको नहीं दिखते रंग
उसकी आँख नहीं होती
भूखे के पास होता है सिर्फ एक पेट...