भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोड़ौ : एक / सुनील गज्जाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्है रोड़ौ
मरग मांय पड्यौ
आवण-जावण आळा
री ठोकरां खावंतौ
मांय-मांय
मनड़ै मैं कळपतौ
फगत
रौड़ै रौ डौळ लियोड़ौ।