भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोता है मन / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
घर नहीं
गोया
छूट गया हो पीछे
कोई बडेरा
तभी तो
आज भी रोता है
मन
याद करके
अपने गाँव को।