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रोते-रोते आँसू सूखे, अब कितना चित्तकारूँ मैं / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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रोते-रोते आँसू सूखे, अब कितना चित्तकारूँ मैं।
आजा बेटा राजदुलारा, अब कितना चिल्लाऊँ मैं।।

लाश तिरंगे में लिपटी है भीड़ लगी दरवाजे पर।
नेता लीडर आते-जाते क्या कहकर समझाऊँ मैं।।

सोया देखो लाल हमारा, मुख मण्डल मुस्कान लिये।
अपने बेटे को बोलो तुम कैसे खुद दफनाऊँ मैं।।

झूठा ढाढ़स देने वालों याद करो बलिदानी को।
उनके परिजन की हालत अब किस-किस को बतलाऊँ मैं।।

लाल हमारा ठान लिया था, सीमा पर जा लड़ना है।
तुम तो लूट रहे घर बैठे, यह भी क्या दिखलाऊँ मैं।।